Sunday, August 14, 2011

तुम आओ ऐसे

 मैंने चाहा था
    तुम आओ जीवन में ऐसे
 जैसे आती है हवा 
        जैसे आती है भोर की
 पहली किरण  |
   जैसे फूटता है अंकुर
  निःशब्द  ,नीरव |
    जैस खिलता है फूल
   अपनी ही खुशबू मे झूमता हुआ |
  मगर तुम आये
  आँधी की तरह
 मेरे वज़ूद को झकझोरते
 तपते सूरज से
 छोड़े तुमने अनेक निशान |
     वट वृच्छ की तरह
   छा गये  तुम |
   सोख लीं तुमने
 सारी कोमलता
 झुलस गयीं 
   सारी आशाए  |
   फिर  भी  निःशेष 
  नहीं हुआ है सब
  बाकी है अभी  थोड़ी  सी नमी |
  और मैं आज भी
      चाहती हूँ कि  
    तुम आओ ऐसे
       जैसे आती है हवा _________________|

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