Thursday, April 19, 2012

सपने देखे तो बहुत
मगर बिखर गये ऐसे
तट से टकराकर जैसे
बिखर जाती हैं लहरें
 चुने थे कुछ फूल
मगर समय की आँधी में
कब तक टिकते भला
बिखर गयीं  पंखुरियां
बनाया फिर शीश महल
पर वह भी चूर -चूर
सह न सका
पत्थर जमाने के
मगर खत्म नहीं हुआ है
सब कुछ
अभी भी शेष हैं
आशाओं की ईंट
 और  इरादों की सीमेंट
गढ़ना हैअपना  वजूद
कुछ ऐसा कि वह
थिर रहे आँधियों में
और सह सके पत्थर
जमाने के   

Sunday, April 15, 2012

मन के  आगन में
व्यतीत ने उकेरे
अनेक चित्र
मिटकर भी मिटे नहीं
बदरंग हो कर भी
रहे हमेशा
मन के  आस पास
चाँद छूने की आभिलाषा में
हर बार मिले
घोंघे और खाली सीपियाँ
सागर की लहरों सी मैं
बिखरती रही
बार बार



Monday, April 9, 2012

शब्द हूँ मैं

फूल नहीं हूँ
कि कुचलकर  मसलकर
मिटा दोगे मेरा वजूद
शब्द हूँ मैं
जितनी कोशिश करोगे
मिटाने की
उतनी ही प्रखरता से
उभरेगा मेरा अर्थ
हर बार
बार बार लगातार