Tuesday, June 26, 2012

पिता ! क्या हिटलरी आन थी उनकी
सारा घर घूमता था
उनके इर्द गिर्द
वे कहीं भी रहें
सब कुछ चलता रहता था
उनके अनुसार
कभी - कभी होती थी
बहुत कोफ़्त
उनकी  हिटलरी पे
बहुत बाद में जाना
पिता होने का अर्थ 
मर्यादा की डोर
पर चलते पिता
बहुत बहुत
 याद आते हैं अब 

Saturday, June 2, 2012

बीत गये दिन
सुहानी शाम के
बढने  लगी है
अब तो तपन

धधकते हैं दिन
अब भट्ठी जैसे
और रात खौलती
जैसे खौलता अदहन

जलती ये धरती
और जलता अम्बर
चहुँओर लगी है
बस अगन- अगन
 
ठिठक गयी  यूँ
ये जेठ दुपहरी
ठिठक रही हो
जैसे कोई दुल्हन

मन का पंछी
अब व्याकुल - व्याकुल
अति व्याकुल सब
चिरई  अउ चिरमुन

तपकर जेठ चला जाएगा
बरसेंगे आषाढी बादल
हरियाएगी धरती सारी
हरियायेगें सबके मन