Sunday, October 28, 2012

मत जलाओ दीप आज
अँधेरा रहने दो
रौशनी हमें बाँट देती है
मैं और तुम में
बना देती है  हमें
इस अमानिशा में आज
बस मानस प्रकाश ही झरने दो
 नैन दीप में तुम
 भर दो  इतना स्नेह
 करे पलायन  अंधकार
बस एक दीप ही जलने दो
अब एक दीप ही जलने दो